यहां जिंदगी के पर्दे में मौत पलती है
खुदा हमको बतादो यह कैसी बस्ती है
खुदा हमको बतादो यह कैसी बस्ती है ,
यहां जिंदगी के पर्दे में मौत पलती है ,
किसी के पावं तो पडतें है फर्श मखमखल पर ,
किसीकी लाश कफ़न के लिये तरसती है ,
मेरे पड़ोस की जालिम ने लूट ली अस्मत ,
कोई जवां लड़की कहती है और जलती है ,
यह कौन लोग है गर्दन को काट के कहते है ,
मस्ती - मस्ती है ....
इंसानियत के घर को गिराते है और कहते हैं ,
आवाज बुलन्द करो खुदा की यह बस्ती है ,
न इनको खौफ -ऐ -खुदा है और न आदमी का ख्याल ,
यह कैसा धर्म है जहां इंसानियत सिसकती है ,
जवां गुंचों को कुचलो ,कली मसल डालो ,
यहां पर जिंदगी महंगी है मौत सस्ती है ,
खुदा हमको बतादो यह कैसी बस्ती है ।
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