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फांसी के फंदे पर लटकने से राम पसाद " विस्मिल " का देश के नवयुवको के नाम एक सन्देश -


 फांसी के फंदे पर लटकने से पहले राम प्रसाद " विस्मिल " का देश के नवयुवको के नाम एक सन्देश -




19 दिसम्बर 1927 को फांसी के फंदे पर लटकने से पहले राम प्रसाद ' विस्मिल ' रात भर गीता पढ़ते रहे । तीन बजे प्रातः नित्य - कर्मो से निपट कर , उन्होंने माता के नाम एक पत्र लिखा । पत्र में देश के नवयुवको के लिये भी सन्देश भेजा था जो इस प्रकार से था -

 " किसी के ह्रदय में जोश , उमंग और उतेजना हो तो उसे गाँवों में जाकर किसानो , श्रमजीवियों ( मजदूरो ) की दशा देखनी चाहिए और उसे सुधारने का प्रयत्न करनी चाहिए ।जन समूहों को शिक्षित करना और दलितोद्वार परमावश्यक है ।..... घृणा , उपेक्षा उचित नही । करुणा - प्रेम सहित व्यवहार हितकर है ।" 

   
          अब सवाल यह उठता है की आज़ादी के लगभग 70 सालो के बाद भी गावो में जाकर देखने पर पता चलता है की आज भी गावों में विकास मिलो दूर है । न बिजली , न स्वास्थ्य , न शिक्षा , न सफाई , न सड़क और न सुरक्षा। महज कुछ महानगरो को विकसित कर देने भर से सम्पूर्ण भारत विकसित नही हो सकता । जब तक भारत के प्रत्येक गाँवों को इन बुनियादी सुबिधा मुहैया न करा दिया जाय तब तक भारत का विकास नही हो सकता ।हम आज भी जात - पात से ऊपर उठ कर नही सोच पाते है ।इसके लिए हमे जात - पात के बन्धन को तोड़ कर आगे बढ़ना ही होगा । तब जाकर राम प्रसाद " विस्मिल " का सपना पूरा होगा ।

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