हे मजदूर किसान
हे मजदूर किसान !
हे मजदूर किसान ! नमस्कार !
सोने - चांदी से नही किंतु
तुमने मिटटी से किया प्यार ।
हे मजदूर किसान ! नमस्कार !
ये खेत तुम्हारी भरी - सृष्टि
तिल-तिल कर बोये प्राण बिज
बर्षा के दिन तुम गिनते हो ,
यह परिवार है , यह दूज , तीज
बादल वैसे ही चले गये ,
प्यासी धरती पायी न भीज
तुम अश्रु कणों से रहे सींच
इन खेतो की दुःख भरी खीज
बस चार अन्न के दाने ही
नैवेध तुम्हारा है उदर
हे मजदूर किसान ! नमस्कार !
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