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आज का समाजिक वातावरण बेहद अश्लील हो गया है

आज का समाजिक वातावरण वेहद अश्लील हो गया है 

आज का समाजिक वातावरण बेहद अश्लील हो गया है , सौंदर्य ऐंद्रिक हो गया है , इंद्रिया देह हो गई है , देह काम हो गया है , काम दाम हा गया है । परिवार बाजार हो गये ।जन्मदात्री स्त्री वस्तु हो गई ह बिज्ञापन का माध्यम बनी, संस्कृति कामसूत्र का बिज्ञापन बन गई ।नई द्रोपदिया अपना दुपट्टा खुद उतार रही है ।हमारी देह और हम सुंदर है तो दिखने में हर्ज ही क्या ? सो देह दोखाने और देखने की होड़ लगी है । नग्न तस्वीरें और फिल्में आज की बाजार स्वभाविक हिस्से हो गए है ।बाजार में रोज नए उत्पाद की खोज हो रही है और इसके बिज्ञयापन के लिये नग्न हो जाने के लिये खोज जारी है ।बाजार ने देह को उपभोक्ता का वस्तु बनाया । संस्कृति और देह का नाता टूट गया ।यहां बाजार में हर चीज बिक रही है । काब्य , गीत , संगीत ,लोक , लाज , शर्म , मर्यादा , इज्जत , आबरु सब बिकाऊ हो गए है ।पता नही हम कितने निचे जायेगें ।हमे अपनी सभ्यता और संस्कृति की असली रूप को पहचानने ली जरूरत है ।


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