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खुदा हमको बता दो ,यह कैसी बस्ती है

खुदा हमको बतादो  , यह कैसी बस्ती है ,

यहाँ जिंदगी के पर्दे में , मौत पलती है ।




खुदा हमको बतादो, यह कैसी बस्ती है ,
जहां जिंदगी के परदे में मौत पलती है ,
   किसी की पाव तो पड़ते है
      फर्श मखमल पर
किसी की लाश कफ़न के लिये तरसती है ,
मेरे पड़ोस के जालिम ने लूट ली अस्मत,
कोई जवां लड़की यह
कहती है और जलती है ,
  यह कौन लोग है,
मख्लूक कौन सी है ?
गर्दन को काट के कहते है ,
  मस्ती मस्ती हैं ,
खुदा के घर को गिराते है और कहते है ,
आवाज बुलन्द करो , खुदा की यह बस्ती है ,
न इनको खौफ -ए-खुदा है
और न आदमी का ख्याल ,
यह कैसा धर्म है जहां ,
इंसानियत सिसकती है ,
जवां गुचों को कुचलो ,
कली मसल डालो ,
यहाँ पे जिंदगी महंगी है , मौत सस्ती है ,

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